(नागपत्री एक रहस्य-10)

सावित्री देवी अपने पुत्र में वे इस आश्चर्यजनक परिवर्तन से हैरान थी, लेकिन मन ही मन प्रसन्न चित्त भी, क्योंकि यह परिवर्तन वह हमेशा से ही चाहती थी, किसी मशीन की भांति काम में लगा रहना , और सिर्फ और सिर्फ अनिवार्य बातों को छोड़कर ना तो सावित्री देवी के पति बात करते थे, और ना ही उन्हीं की तरह दिनकर जी भी।

                  बेचारी सास बहू बातें करती भी तो किससे?? कभी कबार बड़े घर की बहू होना भी एक अभिशाप सा बन जाता है,



कितने ही सीमाएं, बंधन अपने आप पैदा हो जाते हैं, मान सम्मान और दकियानूसी समाज को दिखाने के लिए, व्यक्ति
ना खुल कर हंस पाता है, और ना ही वह चाहकर भी अपनी इच्छा अनुसार कोई काम कर सकता है।
                 सरल शब्दों में उसकी मन की इच्छाएं कई बार महज एक सीमाओं में बंधकर रह जाती है, विरले ही अपने जीवन को पूर्ण सामंजस्य के साथ और आनंदमय होकर गुजार पाते हैं।



जो भी हो खुशी इस बात की थी, जब से सावित्री अपने मायके से लौट चंदा के मायके अर्थात अपनी पुरानी सखी के घर आई, वह भारी प्रसन्न नजर आ रही थी, कारण सीधा सा था ,कि वह जब से आई है, तब से अभी तक उन्होंने जितनी बातें अपनी मां से कहीं और सुनाई, शायद इतनी बातें तो उन्होंने आज तक वर्षों पहले भी ना की होगी, उनके आने पर दिनकर जी ने उन्हें ना जाने कितने ही सवाल किए।



धर्म और संस्कृति की बातें सुनाई, और साथ ही साथ उन्होंने उन बातों का भी उल्लेख किया, जिन से वे अभी तक अनजान बने रहे, उन्होंने कभी सावित्री जी को इसके लिए दोषी ठहराया, तो कभी अपना दुर्भाग्य बताया।
                 सावित्री जी को भी अपनी गलती का एहसास हुआ,  यह आधुनिकता की दौड़ और अपने पति की इच्छा पूरी करने , जो वास्तव में (उनकी थी ही नहीं) उनकी मंशा ने उन्हें बेबस ही अपने बेटे से दूर कर दिया। 




चूंकि सावित्री देवी एक मध्यमवर्गीय परिवार से थी, और वह चाहती थी कि उनकी संतान उच्च वर्ग से कहीं भी पीछे ना रहे, उसे कभी भी किसी भी कमी का आभास ना हो, इसलिए उन्होंने उस संस्कृति को ही छिपा लिया, जिनकी चर्चा हो सकता थी, जो कभी उच्च वर्गों के बालकों के बीच मजाक का पात्र बन सकती थी,
                  लेकिन अफसोस वह उस वास्तविकता को भी ना बता पाई, जिनकी जानकारी एक आम भारतीय को होना अत्यंत आवश्यक है, आखिर क्यों??उन्होंने ऐसा क्यों किया, इस सवाल का जवाब उन्हें दूर-दूर तक नजर नहीं आता। 




जो भी हो जब दिनकर जी ने उन्हें उस पर्वत श्रेणी पर स्थित नाग देवी की कहानी सुनाने प्रारंभ की, तब सावित्री देवी भी उसका साथ देने लगी, उन्होंने बताया कि कैसे वर्षों पहले संतान सुख की प्राप्ति को लेकर वे खुद भी अनायास ही किसी भक्त के कहने पर उसी मंदिर में आए थे।
                   जिसके बात आज की जा रही है, और शायद इसलिए उन्होंने बिना किसी विचार के एक बार में ही चंदा को हां कह दिया, क्योंकि वह भली भांति परिचित थी उस मंदिर की महिमा से,



तभी अचानक उनके मुंह से गुप्त पांच दरवाजे की बात सुन जैसे दिनकर जी और भी उत्सुक हो उठे ,सावित्री देवी बता रही थी कि उस पर्वत पर घनघोर धुआंर और कुछ भी दिखाई नहीं देने के कारण उसके बहुत से रहस्य को जान पाना आज भी मुश्किल है।
            लेकिन यह भी सत्य है कि भूले बिछड़े ही अनायास ही जब कोई व्यक्ति जिसके दोबारा मिलने की कोई उम्मीद ही ना लगती थी, कई बार ऐसे लोग उस पर्वत पर चक्कर लगाते सुरक्षित लौट आए। 




उनमें से उनके गांव का एक ग्वाला जो अब वैरागी हो चुका है, एक बार अचानक अपनी गाय के बछड़े की खोज में जो बहुत ही सुंदर था, उस पर्वत श्रेणी की तलहटी में चला गया, खोजते खोजते उसे पता ही नहीं चला, कि कब देर हो गई और वह भटकता रहा।  
               जैसे ही उसे यह अंदेशा हुआ कि सांझ हो चली है, वह घबरा गया, लेकिन ना जाने क्यों उसके मन में अनेक आशंकाये उस प्यारे से नन्हे से बछड़े को लेकर गूंज रही थी, 




लेकिन सांझ होने के पश्चात अंधेरे में उसे ढूंढ पाना भी संभव नहीं था, इसलिए वह पेड़ के ऊपर जाकर बैठ गया, रात्रि बितने के पश्चात वह पुनः खोज प्रारंभ कर सके, विचार करते हुए थोड़े समय घबराते रहा, 
            लेकिन अचानक उसके मन में क्या सूझा, वह सोचने लगा कि, ऐसा कहते हैं कि यह पर्वत श्रेणी देवियों का निवास स्थान है, तब फिर भला मैं व्यर्थ ही चिंता कर रहा हूं।




           जब संपूर्ण सुरक्षा का आश्वासन हमें और इस गांव के कण-कण में प्राप्त हैं, तब व्यर्थ ही मैं चिंतित हूं, यह सोचते हुए उसने मन ही मन उस ग्राम देवता को नमस्कार किया, और क्षमा याचना की, कि वह निरर्थक ही परेशान हो रहा है, और अनायास ही ऐसी भूल कर बैठा, जिसकी साफ मनाई है।
                      वह रात्रि के उस प्रहर में जबकि मानव जाति का प्रवेश स्पष्ट रूप से निषेध किया गया है, तब भी वह आकर उसी जंगल में आ बैठा। 



गलती का एहसास होने पर अब उसके मन में डर पैदा होने लगा, लेकिन अब कोई दूसरा उपाय शेष नहीं था, केवल क्षमा याचना के अलावा वह इतना सोच ही रहा था, कि उसे कुछ हलचल महसूस हुई और वह घबरा गया, क्योंकि वह जिस पेड़ पर बैठा था, उस पेड़ की टहनियां अचानक जीवंत हो उठी, और किसी फूल की भांति उन्होंने उस ग्वाले को अपने अंदर कैद कर लिया और अचानक तेज रोशनी हुई। 
                   उसे ऐसे लगा जैसे वहां पेड़ अपने स्थान पर उठ खड़ा हुआ हो, और अचानक चलने लगा हो, 



ग्वाले ने बहुत पहले अपने बुजुर्गों से सुन रखा था, उसे अब भी अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, कि वह जिस पेड़ पर त्रुटि वश चढ़कर बैठ गया है, वह वास्तव में एक सफेद पलशे का पेड़ है, जो वास्तव में खुद ही एक दैवीय पेड़ है, 
                 जिसके दर्शन मिलना भी अत्यंत दुर्लभ होता है, और उसने सुन रखा था की रात्रि के दूसरे प्रहर वनस्पति पौधे और जड़ जीवित शक्तियों के लिए होता है , और वह चुपचाप बैठकर महसूस करने की कोशिश करने लगा, कि आखिर क्या हो रहा है ,


वह पेड़ जिसमें एक फल नुमा आकृति से उस ग्वाले को ढक कर रखा था, अपने स्थान से चलकर अत्यंत प्रकाश के साथ पर्वत के शिखर की ओर बढ़ने लगे, जैसे ही वह पेड़ आगे बड़ा उसे वह पांच गुप्त दरवाजे दिखने लगे।
आखिर इन गुप्त दरवाजों का क्या राज है?????

क्रमशः.....

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